Буддийские памятники в Санчи
Объект всемирного наследия ЮНЕСКО (Индия)
Комплекс Санчи расположен на холме, окруженном равнинами, приблизительно в 40 км от города Бхопал. Он состоит из группы буддийских памятников (монолитных столпов, дворцов, храмов и монастырей), которые имеют различную степень сохранности и в основном относятся к II-I вв. до н.э. Это самое древнее из сохранившихся буддийских святилищ, являвшееся основным центром буддизма в Индии вплоть до XII в.
Категория: Культурный
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Отзывы на «Буддийские памятники в Санчи »
Общий рейтинг Гугл
(4.6, всего отзывов: 9544). Ниже приведено несколько последних отзывов, полученных от Гугла.
Alla Molchanova, 2018-11-13
Необычно. При этом ухожено и чисто, тихо и спокойно). Стоит побывать.
Необычно. При этом ухожено и чисто, тихо и спокойно). Стоит побывать.
Angshuman Moitra, 2020-04-14
The place is on the way to Bhopal and falls on the highway / main road. One has to travel around 500 metres to reach the campus from the main road. The place also boasts of a mini zoo kind of facility and has separate , clean toilets. The place is frequented by people from different countries and has options for having good photography with a valley in the background
The place is on the way to Bhopal and falls on the highway / main road. One has to travel around 500 metres to reach the campus from the main road. The place also boasts of a mini zoo kind of facility and has separate , clean toilets. The place is frequented by people from different countries and has options for having good photography with a valley in the background
Divya Sarathy, 2020-03-11
History lessons from school come to life! Beautifully maintained group of monuments. The light and sound show is a must see - very great production values. Unfortunately you have to get lucky to watch it as the admin wait for some minimum number of confirmed attendees to actually have the show. A college excursion coincided with the day of our visit and we were able to watch. The walk up the hillock where the monuments are situated via the old path is also nice in case you fancy some mild physical activity.
History lessons from school come to life! Beautifully maintained group of monuments. The light and sound show is a must see - very great production values. Unfortunately you have to get lucky to watch it as the admin wait for some minimum number of confirmed attendees to actually have the show. A college excursion coincided with the day of our visit and we were able to watch. The walk up the hillock where the monuments are situated via the old path is also nice in case you fancy some mild physical activity.
OP DHAKAD SIR, 2020-01-30
साँची भारतके मध्यप्रदेश राज्य के रायसेन जिले में बेतवा नदी के तट स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से ४६ कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा बेसनगर और विदिशा से १० कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहां कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है। रायसेन जिले में एक अन्य विश्व दाय स्थल, भीमबेटका भी है। विदिशा से नजदीक होने के कारण लोगों में यह भ्रम होता है की यह विदिशा जिला में है। यहाँ छोटे-बड़े अनेकों स्तूप हैं, जिनमें स्तूप संख्या २ सबसे बड़ा है। इसके चार द्वार हैं।चारों ओर की हरियाली अद्भुत है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी बने हैं। स्तूप संख्या १ के पास कई लघु स्तूप भी हैं, उन्ही के समीप एक गुप्त कालीन पाषाण स्तंभ भी है। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट अशोक महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था।इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा है जिसके ऊपर पत्थरों से स्तूप का निर्माण किया गया है।जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा जारी 200 रुपये के नोट पर भी इन स्तूपों को स्थान दिया गया है। इन स्तूपों के समीप ही एक छोटे बाड़े में खरगोश एवं कबूतरों को भी रखा गया है।
साँची भारतके मध्यप्रदेश राज्य के रायसेन जिले में बेतवा नदी के तट स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से ४६ कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा बेसनगर और विदिशा से १० कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहां कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। सांची रायसेन जिले की एक नगर पंचायत है। रायसेन जिले में एक अन्य विश्व दाय स्थल, भीमबेटका भी है। विदिशा से नजदीक होने के कारण लोगों में यह भ्रम होता है की यह विदिशा जिला में है। यहाँ छोटे-बड़े अनेकों स्तूप हैं, जिनमें स्तूप संख्या २ सबसे बड़ा है। इसके चार द्वार हैं।चारों ओर की हरियाली अद्भुत है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी बने हैं। स्तूप संख्या १ के पास कई लघु स्तूप भी हैं, उन्ही के समीप एक गुप्त कालीन पाषाण स्तंभ भी है। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट अशोक महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था।इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा है जिसके ऊपर पत्थरों से स्तूप का निर्माण किया गया है।जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा जारी 200 रुपये के नोट पर भी इन स्तूपों को स्थान दिया गया है। इन स्तूपों के समीप ही एक छोटे बाड़े में खरगोश एवं कबूतरों को भी रखा गया है।
Dhakad Learn, 2020-01-13
यह स्तूप सम्राट अशोक के द्वारा सांची में बनवाए गए यहां वर्ष में एक बार नवंबर माह में मेले का आयोजन होता है जिसमें महामोगलयान की अस्थिया पूजा हेतु बाहर निकाली जाती हैं यह स्थान पौधों के लिए पवित्र स्थान है इसमें श्रीलंका नेपाल चीन एवं अन्य अन्य स्थानों से यहां पर श्रद्धालु बढ़ाते हैं एवं पर्यटक भी मनमोहक दृश्य देखने के लिए एवं फोटोग्राफी के लिए भी यहां आते हैं यह भोपाल के 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित है यहां भोजन के स्वादिष्ट होटल एवं ढावे है। एवं परिवार सहित इंजॉय कर सकते हैं
यह स्तूप सम्राट अशोक के द्वारा सांची में बनवाए गए यहां वर्ष में एक बार नवंबर माह में मेले का आयोजन होता है जिसमें महामोगलयान की अस्थिया पूजा हेतु बाहर निकाली जाती हैं यह स्थान पौधों के लिए पवित्र स्थान है इसमें श्रीलंका नेपाल चीन एवं अन्य अन्य स्थानों से यहां पर श्रद्धालु बढ़ाते हैं एवं पर्यटक भी मनमोहक दृश्य देखने के लिए एवं फोटोग्राफी के लिए भी यहां आते हैं यह भोपाल के 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित है यहां भोजन के स्वादिष्ट होटल एवं ढावे है। एवं परिवार सहित इंजॉय कर सकते हैं